बिन मोदी सब सुन - राज्यों के नेताओं में नही है जीतने की धुन :- लेखक पंडित मिलिंद त्रिपाठी
दिल्ली की जीत पुरे देश का जनमत सर्वेक्षण नही है ।
दिल्ली तीसरी बार केजरीवाल सरकार
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के रिजल्ट घोषित हो गए । एक्जिट पोल सही साबित हुए । जैसा कि इसके पूर्व के लेख "एक्जिट पोल पर वबाल" में मैने जो अनुमान लगाया था लगभग रिजल्ट भी वैसे ही प्राप्त हुए । बात आती है जब केंद्र के चुनाव की तो मोदी का जादू सर चढ़ कर बोलता है । लेकिन राज्यो के चुनाव में जब राज्यो के लीडर की बात आती है तो भाजपा की स्थिति दयनीय हो जाती है । जिस भाजपा ने चंद दिन पहले दिल्ली में परचम लहराया था वो ही भाजपा चंद दिन बाद हुए विधानसभा चुनाव में हार गई । आखिर कैसे ? इसके पीछे की सबसे बारीक बात को समझना होगा । मोदी जी काम के कारण जनता की पसन्द है तो राज्यों में भाजपा के लीडर फेल है क्योंकि न तो उनमें काम करने की क्षमाता है न मोदी जी जैसी लोकप्रियता । तो अकेले मोदी जी के कंधे पर चढ़कर कब तक नेता सत्ता हासिल करते रहेंगे । उनको उनके काम पर भी फोकस करना चाहिए । जैसा कि लोकसभा चुनावों में भी मोदी लहर में अनेकों अज्ञात चेहरे भी ऐतेहासिक जीत दर्ज करते है लेकिन जब बात विधानसभा चुनावों की आती है और जनता क्षेत्रीय लेवल के भाजपा नेताओं को देखती है तो उसके हाथ निराशा ही लगती है । स्पष्ठ सोचना चाहिये की पार्षद चुनाव या विधायक चुनाव को मोदी जी के नाम से नही लड़ना चाहिए यह चुनाव लोकल स्तर पर जमीनी मुद्दों पर जनता से जुड़े मुद्दों पर लड़ना चाहिए । केंद्र के काम के दम पर आपको केंद्र में सरकार दी गयी अब केंद्र के काम के नाम पर आपको कितनी सरकार दी जाए ? भाजपा में सबसे बड़ी खामी यह भी नजर आ रही है कि उसका संगठन भी केवल हवा हवाई होता जा रहा है जो कागजो तक ही सीमित है पद लेकर घर बैठने वाले अनेकों लोगो को पार्टी में तवज्जो दी जाने लगी है जिसका खामियाजा राज्यों की सरकार गंवा गंवा कर भाजपा को हो रहा है । भाई भतीजा वाद भी केवल मोदी जी और शाह जी को छोड़कर बाकी लीडरों पर हावी है । बड़े बड़े नेताओं ने अपने पूरे पुरे परिवार की राजनीति में इंट्री करा रखी है । नागरिकता संसोधन कानून केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया है वो जनता को पसन्द आया या नही यह केंद्र के चुनाव तय करेंगे राज्यो के चुनाव से इन कानूनों का कोई लेना देना नही है । चुनाव जीत जाने से यह सिद्ध नही होता कि हर मुद्दे पर जनता आपके साथ है । दिल्ली की जीत पूरे देश का जनमत सर्वेक्षण नही है । यह केवल दिल्ली के लोकल मुद्दों पर आम आदमी पार्टी के कार्यो पर जनता की मोहर है । जनता को आम आदमी पार्टी के कार्य पसन्द आये है इसमें कोई दो राय नही लेकिन इस जीत को पूरे देश से जोड़कर देखना गलत होगा ।
कांग्रेस का शून्य क्या केजरीवाल ने कर दिया कांग्रेस मुक्त दिल्ली का नारा सही :- जो काम मोदी जी करना चाहते थे वो काम केजरीवाल जी ने कर दिखाया उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस को शून्य पर लाकर पटक दिया । देश की सबसे पुरानी पार्टी 70 सीट में से एक भी सीट नही जीत पाई । सोचने वाला विषय है यह भी है कि कांग्रेस के लोग केजरीवाल जी की जीत में खुश नजर आ रहे है यही कांग्रेस का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि एक नई नवेली पार्टी उसे शून्य पर ले आये कार्यकर्ताओं में गुस्से की जगह खुशी नजर आए । यह अंत के संकेत है अभी भी कांग्रेस को संभलने की जरूरत है ।
आम आदमी पार्टी का ग्राफ गिरा :- दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के नतीजों ने यह आम आदमी पार्टी की भले ही सरकार बन गयी हो । लेकिन उनकी विजय सीटों पर भी वोट अंतर बहुत कम रहा है । भाजपा ने पिछले विधानसभा चुनाव के मुकाबले अपना वोट प्रतिशत बढाया है । वही एक तरफा राज वाले केजरीवाल की जड़े उखड़ी न सही पर थोड़ी हिली तो है । जनता ने आखरी 6 महीने के काम पर केजरीवाल जी को विजय दी है 4.5 वर्ष के उनके कामकाज से जनता सन्तुष्ठ नही थी । लेकिन अंतिम समय में सच्चाई को देखकर केजरीवाल जी ने अपना रुख काम पर फोकस किया था जिसका परिणाम उन्हें आज मिला ।
केजरीवाल एक तरफा मोदी विरोधी नही -: धारा 370 पर मोदी सरकार का समर्थन करके केजरीवाल जी ने सिद्ध किया था कि वो मोदी जी के कट्टर दुश्मन नही है । हर मुद्दे पर उन्होंने मोदी जी का विरोध किया लेकिन आखरी के 6महीने में उन्होंने कुछ मुद्दों पर उनको समर्थन भी किया है । केजरीवाल ने लोकसभा चुनाव में मोदी पर निजी हमले करने की कांग्रेस नेताओं की गलतियों से सबक लिया क्योंकि वे लोकसभा में मोदी को चुनने वाले दिल्ली के वोटरों को नाराज नहीं करना चाहते थे। यहां तक कि जब पाकिस्तान के मंत्री फवाद हुसैन ने कहा कि देश के लोगों को मोदी को शिकस्त देनी चाहिए, तब केजरीवाल ने जवाब दिया कि मोदी जी मेरे भी प्रधानमंत्री हैं। दिल्ली का चुनाव भारत का आंतरिक मसला है और हमें आतंकवाद के सबसे बड़े प्रायोजकों का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं।
जीत को शाहीनबाग से जोड़कर देखना गलत - क्या यह जीत असम को भारत से अलग करने वाले लोगो की जीत है ? नही क्या यह जीत शाहीनबाग की है ? नही यह जीत है मजबूत होते लोकतंत्र की जहां जनता काम के पैमाने पर वोट करने लगी है । यह परिपक्वता भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत अच्छा संकेत है । मोदी जी ने अच्छा काम किया जनता ने उन्हें विजय श्री दी । केजरीवाल जी ने अच्छा काम किया जनता ने उन्हें विजय श्री प्रदान की ।