बच्चों की जान से खिलवाड़ करते कई स्कूल वाहनों के चालक ।


हाल ही में एक घटना ने देश को  झकझोर दिया शनिवार दोपहर बाद लौंगोवाल इलाके में स्थित सिमरन पब्लिक स्कूल की जिस वैन में चार बच्चों की जिंदा जलकर मौत हुई थी, उस वैन को शुक्रवार को ही स्कूल संचालक ने 25 हजार रुपए में कबाड़ में से खरीदा था। स्कूल से जरा सी दूरी पर ही इस वैन में आग लग गई और कमलप्रीत, आराध्या, नवजोत कौर और सिमरनजीत सिंह  नामक बच्चों की जिंदा जलकर माैत हो गई। पुलिस ने वैन के चालक और स्कूल के प्रिंसिपल को गिरफ्तार कर लिया है ओर उनपर हत्या का केस दर्ज किया गया है । सुबह - सुबह खाली सड़क पर बहुत तेज स्पीड से गुजरते स्कूल वाहनों को देखता हूँ, तो सोचता हूं, क्या स्पीड कंट्रोलर मीटर की अनिवार्यता से स्कूल वाहनों को छूट दे रखी है ?  फिर त्वरित यह विचार आता है कि स्कूल वाहनों की फिटनेस की जांच समय - समय पर होना चाहिए परन्तु बच्चों के साथ जानलेवा खिलवाड़ करने वाले स्कूल वाहनों के मालिक और न प्रशासन उनपर ध्यान देता है । चलिए प्रश्न पालकों से पूछता हूँ ?आपके बच्चे की स्कूल बस का कन्डेक्टर कौन है ? उसका असली नाम पूरा परिचय क्या आपको पता है ? क्या स्कूल बस के ड्राइवर की पूरी जानकारी आपको है ? क्या स्कूल बस के ड्राइवर ओर कन्डेक्टर का पुलिस वेरिफिकेशन हुआ है ? क्या स्कूल बसों में जीपीएस ,कैमरा ,चिकित्सा बॉक्स उपलब्ध है ? क्या आपने कभी बच्चों से पूछा कि बसों में आपके साथ गलत व्यवहार तो नही हो रहा ? क्या आपने बच्चे से पूछा स्कूल बस में आपको कन्डेक्टर अंकल कैसे बोलते है ? क्या आपके ड्राइवर स्पीड में बस चलाते है या नही ? आपमे से अधिकतर पालकों का सर्वे किया जाए तो आप कहेंगे हमने कभी इन सब प्रश्नों की जांच नही की होगी । 
स्कूलों में लगे वाहनों में मारुति वैन, ओविनी वैन, टाटा मैजिक, पुरानी बोलोरो, मार्सल आदि सवारी वाहनों को लगाया गया है। यह वाहन स्कूल समय पर बच्चों को ढोते हैं और बाकी समय में सवारियों को ग्रामीण इलाकों के लिए ढोते हैं। वाहनों में चलने वाले ड्राइवर व हेल्परों का पुलिस वेरीफिकेशन अपडेट नहीं है। कुछ स्कूल वाहनों में जीपीएस तो लगाए गए हैं लेकिन वह चालू नहीं हैं। स्कूल वाहनों के पलटने या ड्राइवरों की लापरवाही से हर साल अनेकों छात्र हादसे का शिकार होते है। बावजूद इसके परिवहन विभाग ने स्कूलों के वाहनों को चेक करने की कार्रवाई अपनी प्राथमिकता में शामिल नहीं की है। यही कारण है कि स्कूल वाहन सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन का पालन नहीं करते।स्कूली बच्चे प्रतिदिन अवैध वाहनों में खुलेआम मौत का सफर तय कर रहे हैं। उधर, जिला प्रशासन, परिवहन विभाग और शिक्षा विभाग लाख दावे करने के बावजूद अवैध स्कूली वाहनों पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हुआ है। ई-रिक्शा स्कूल वाहनों के रूप में पंजीकृत नहीं है। इसके बावजूद शहरभर में अधिकारियों की आंखों के सामने ई-रिक्शा से लेकर जुगाड़ वाले वाहनों तक में बच्चों को ढोया जा रहा है। अधिकारी सबकुछ जानते हुए भी अनजान बने हुए है। कुछ स्कूल वालो को तो पता ही नही होगा कि सुप्रीम कोर्ट ने क्या गाइडलाइन जारी की है ।



बहुत कम स्कूल बसों का स्टाफ वर्दी में रहता। जो रहते भी है उनकी वर्दी पर नेमप्लेट नहीं लगी होती है। लगभग 90% ड्राइवर व हेल्परों का पुलिस वेरीफिकेशन अपडेट नहीं है । 
स्कूल वाहनों में लगे अग्निशमन यंत्र चलाने का प्रशिक्षण कम ड्राइवर व कंडक्टर के पास है। 60 फीसदी ड्राइवर आग बुझाने में दक्ष नहीं हैं। 
देश में कहीं भी स्कूल वाहन हादसा होने के बाद जिला प्रशासन, परिवहन विभाग और शिक्षा विभाग स्कूलों को नोटिस जारी करके वाहनों को दुरुस्थ करने के निर्देश देते हैं यही खानापूर्ति से ये विभाग काम चला लेते है । कई दिन तक अभियान चलाकर मानक पूरे न करने वाले वाहनों पर दिखावे के लिए कार्रवाई की जाती है। इसके विपरीत जो वाहन स्कूल वाहन के रूप में पंजीकृत ही नहीं हैं, ऐसे वाहनों पर कार्रवाई नहीं की जा रही है। ऐसे वाहन अधिकारियों के वाहनों के सामने से निकल जाते है अधिकारी आंख मूंदकर सब होने दे रहे है ।



पीली बसों को और वाहनों को एक फायदा और मिल जाता है उनके समस्त प्रपत्र जैसे आरसी, बीमा, प्रदूषण आदि की जांच नही की जाती है । वाहन फिटनेस प्रमाणित पत्र की जांच सालों तक नही की जाती । इसके अलावा स्कूली बच्चों के इन अनाधिकृत वाहनों की ओवर स्पीडिंग, ओवर लोडिंग करने वाले वाहनों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नही की जाती है । स्कूल वालों ने स्वयं को बचाने के लिए एक ओर हथकंडे को अपना रखा है वो किसी एजेंसी को स्कूल बसों के संचालन का काम सौप देती है जिससे कोई भी कार्यवाही हो तो एजेंसी पर हो स्कूल को जवाबदार नही माना जाए । वही स्कूलों में अटैच वाहनों का चलन भी बड़ा है । स्कूल की फीस अलग एवं स्कूल वाहनों की बहुत अधिक फीस अलग से वसूली जाती है पालक त्रस्त है पर उनकी सुनने वाला कोई नही है ।